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कृपां कुरु जगन्नाथ वद वेदविदां वर ॥ २॥

लज्जायुग्मं वह्निजाया स तु राजेश्वरो महान् ॥ १३॥

इति विश्वसारोद्धारतन्त्रे आपदुद्धारकल्पे भैरवभैरवीसंवादे वटुकभैरवकवचं समाप्तम् ॥

अनुष्टुप् छन्दः । श्रीबटुकभैरवो देवता ।

ಓಂ ಶಿರೋ ಮೇ ಭೈರವಃ ಪಾತು ಲಲಾಟಂ ಭೀಷಣಸ್ತಥಾ

॥ इति श्रीरुद्रयामलोक्तं श्रीबटुकभैरवब्रह्मकवचं सम्पूर्णम् ॥

जानू च घुर्घुरारावो जङ्घे रक्षतु रक्तपः

तस्य पादाम्बुजद्वन्दं राज्ञां मुकुटभूषणम् ॥ २६॥



ॐ ह्रीं प्रणवं पातु here सर्वाङ्गं लज्जाबीजं महाभये ।

कालभैरव भगवान शिव के रौद्र अवतार हैं। आदि शंकराचार्य ने काल भैरव अष्टक में भगवान शिव के इस रूप का वर्णन किया है। कालभैरव ब्रह्म कवच कालभैरव का एक शक्तिशाली भजन है। ऐसा कहा जाता है कि इस ढाल का जाप करने से आप जादू-टोने और अन्य शत्रुओं के हमलों से बच जाते हैं।

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ऊर्ध्व पातु विधाता च पाताले नन्दको विभुः।

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